क्या हमें वास्तव में मोटिवेशन की आवश्यकता है?
क्या हमें वास्तव में मोटिवेशन की आवश्यकता है?
मोटिवेशन क्या है?
मोटिवेशन एक ऐसी
प्रक्रिया है, जिसमें विचार हमारे व्यवहार को प्रभावित करते हैं। मोटिवेशन चक्र के
प्रत्येक चरण में दृष्टिकोण, विश्वास, इरादे, प्रयास और वापसी जैसे पहलू शामिल
हैं। ये सभी पहलू किसी व्यक्ति के मोटिवेशन को प्रभावित करते हैं। अधिकांश
मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का दावा है कि मोटिवेशन व्यक्तिगत रूप से मौजूद है, लेकिन
सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत, सामाजिक समूह के सांस्कृतिक संदर्भ में क्रियाओं और
गतिविधियों में भागीदारी के परिणामस्वरूप मोटिवेशन व्यक्त करते हैं।
साथियों आज का हमारा विषय
है मोटिवेशन, यानी मोटिवेशन। जब भी मैं इस शब्द को सुनता हूं तो मैं खुद को सवालों
के घेरे में खड़ा पाता हूं कि आखिर यह शब्द है क्या? या क्यों इस शब्द की जरूरत
इंसानों को पड़ती है? क्या इसके कुछ बुरे पक्ष भी है जैसे इसके अच्छे पक्ष लोगों
में प्रचलित हैं। उम्मीद है आपको भी मोटिवेशन मिलेगा इस लेख को पढ़ने के बाद। इस
लेख को पढ़ने के बाद आप निर्णय कर सकते हैं कि आपको जिंदगी में मोटिवेशन की सच में
जरूरत है या नहीं।
मोटिवेशन यानी मानसिक मजबूती
मोटिवेशन यानी प्रेरणा एक
ऐसी एक्टिविटी है जिसमें विचार और मानसिक स्थिति हमारे व्यवहार को प्रभावित करती
है। इस प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में दृष्टिकोण विश्वास इरादे प्रयास और वापसी
जैसे पहलू भी शामिल हैं। यह सभी पहलू किसी व्यक्ति की मानसिक तौर पर मोटिवेशन को
प्रभावित करते हैं। मोटिवेशन का मतलब है कि जो लोगों के अंदर आवश्यकता है, इच्छाएं
या चाहत रहती हैं, उनको पूरा करने के लिए उत्तेजित करने वाली भावनाएं।
बात पुरानी है, यूं ही
कोई 1970-80 के दशक की बात होगी, जब मोटिवेशन जैसे विषयों पर बात होनी शुरू हुई।
और यह हमेशा चलती रहेगी।
अक्सर देखा गया है कि
मोटिवेशन आंतरिक या बाहरी होता है मतलब जैसे कोई व्यक्ति अंदर से मोटिवेट होता है
लेकिन कोई अपने आसपास पर्यावरण या दोस्तों या समाज से मोटीवेट होता है।
अब पहली फुर्सत में हम जानेंगे कि आंतरिक मोटिवेशन क्या होता है.
मित्रों आंतरिक मोटिवेशन
एक ऐसा व्यवहार है, जो आंतरिक पुरस्कारों को संतुष्ट कर के संचालित होता है. जैसे
एक खिलाड़ी किसी पुरस्कार को पाने के बजाय अपने खेलने को लेकर ज्यादा खुश रहता है.
व्यक्ति की किसी कार्य
में रुचि या जिस कार्य में उसे मजा आ रहा है, या जिस काम के लिए उस पर कोई दबाव या
विचार नहीं थोपा गया है. या यूं कहें कि उस काम को करने की इच्छा उसके मन में है,
और उसे उस काम को करने में आनंद आता है यानी यह जो विचार हमारे अंदर हैं यही
आंतरिक मोटिवेशन है। आंतरिक मोटिवेशन एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है जो संज्ञानात्मक,
सामाजिक और शारीरिक विकास में एक महत्वपूर्ण एलिमेंट है। आंतरिक मोटिवेशन को हम
सेल्फ डिटरमिनेशन और या बौद्धिक क्षमता से भी समझ सकते हैं।
जैसे अगर आप लोग ऑफिस
जाते हैं और आपको उस काम में यानी अपने दैनिक कामों में मजा आता है. ऑफिस में जाकर
आपको काम करना पसंद है, आपको पावर-पॉइंट की स्लाइड्स बनाना पसंद है. आपको एक्सेल
के साथ काम करना पसंद है, तो आप कंप्यूटर के सामने बैठे-बैठे भी कभी बोर नहीं
होंगे। अगर आपकी रूचि उस कार्य में है जिसको आप कर रहे हैं तो इसके लिए आपको कोई
बाहरी मोटिवेशन नहीं चाहिए होती है।
आंतरिक मोटिवेशन का मतलब है,
कि जब हम लक्ष्यों को प्राप्त करने या उनको प्राप्त करने की इच्छा खुद से बनाते हैं. तब चाहे इसके बीच में कितनी भी चुनौतियां या कितने भी तकलीफें आए, हम उन पर ध्यान नहीं लगाते। बल्कि हमें बस यह पता होता है कि अपने लक्ष्य को हासिल करना है. यानी यूं कहें कि जब कोई व्यक्ति एक निश्चित उद्देश्य को पूरा करने के लिए आंतरिक रूप से प्रेरित होता है।
दोस्तों, प्रतिक्रिया और
सुदृढ़ीकरण जैसी सामाजिक घटनाएं इंसान की क्षमता की भावनाओं का कारण बन सकती हैं.
और इसलिए मोटिवेशन लेवल को बढ़ाते हैं। परंतु अगर कॉम्पिटेंस की भावना नहीं है तो
क्षमता की भावनाएं आंतरिक मोटिवेशन को नहीं बढ़ाएंगे। ऐसी स्थिति में जहां विकल्प
भी हो, भावनाएं भी हो, और अवसर भी मौजूद हो तो मोटिवेशन खुद-ब-खुद बढ़ जाता है
क्योंकि लोग कंपेटेंस की अधिक भावना महसूस करते हैं। जब हम लोगों की पसंद की बात
करते हैं या उनकी भावनाओं का ख्याल रखते हैं, उनका जवाब देते हैं या उनके या उनके
विकास में वृद्धि जब होती है और हम उसे अप्रिशिएट करते हैं, तो यह मोटिवेशन को
बढ़ाने में कारगर साबित होता है।
आंतरिक प्रेरणा और परिवर्तन की इच्छा
आंतरिक प्रेरणा हमेशा
परिवर्तन की इच्छा रखती है या तो खुद में या फिर अपने आसपास के समाज या पर्यावरण
में। प्रेरणा का सार सक्रिय और लगातार लक्ष्य की ओर चलने वाला व्यवहार है मतलब जब
हम मोटिवेट होते हैं तो हम कदम उठाते हैं और आगे जो भी काम करना है उसको करते हैं।
मोटिवेशन पर असर तब पड़ता है जब जीवन को बनाए रखने के लिए या फिर जो चीजें भलाई और
विकास के लिए आवश्यक हैं उन पर काम किया जाता है या उन पर काम करने का लक्ष्य
बनाया जाता है और ऐसा करने से मन को संतुष्टि भी प्रदान होती है।
अब अपने आसपास उस व्यक्ति
को ढूंढिए जो हमेशा हंसता हुआ या खुले विचारों में दिखता है या जो कभी नहीं या फिर
यूं कहें कि बहुत ही कम निराश या दुखी दिखता है। वह हर काम में मन लगाता है या जो
भी काम को वह शुरू करता है उसे खत्म करने का वह हमेशा इरादा रखता है। उसके पास
हमेशा कोई ना कोई गोल या लक्ष्य जरूर होगा जो उसने पूर्व निर्धारित कर रखा है। या
वह व्यक्ति किसी न किसी विकास के कार्यों में जरूर खुद को इंवॉल्व करेगा। वह
व्यक्ति हमेशा कुछ ना कुछ करता हुआ दिखाई देगा जो दूसरों की भलाई के काम आ सके।
अब आते हैं दूसरे नंबर के लोग जो होते हैं बाहरी तौर पर मोटिवेट
बाहरी तौर पर मोटिवेटेड
लोगों को आप तब भी देख सकते हैं, जब हम कोई क्रिकेट मैच या फुटबॉल मैच देखते हैं.
जब सामने खेल रहा खिलाड़ी खूब रन बनाता है तब हम मोटिवेट हो जाते हैं. खुद ही उस
खिलाड़ी की तारीफ या हम भी जोश से भर जाते हैं। या फिर जब हम कोई ऑडियो या वीडियो
सुनते या देखते हैं किसी भी मोटिवेशनल सब्जेक्ट पर। या हम किसी के कहने से कोई
कार्य करते हैं या खुद को प्रेरित मानते हैं जब कोई हमें ज्ञान देता है। बाहरी तौर
पर मोटिवेटेड व्यक्ति कुछ देर के लिए जरूर सक्रिय हो जाता है परंतु फिर वह अपनी
मानसिक स्थिति के साथ उसी आयाम में जीने लगता है।
मान लीजिए आप एक मैनेजर
हैं, और आपके पास हजार लोग हैं. जो प्रतिदिन आपके लिए 8 घंटे काम करते हैं। साल भर
तक काम करने के बाद आपका प्रॉफिट अगर 5 0% है, तो आपको जरूरत हो जाती है अपनी टीम
को मोटिवेट करने की। यदि आपके टीम मेंबर लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रहे हैं तो आपको
उनसे बात करनी चाहिए। आपको पता करना होगा कि उनके अंदर जो मोटिवेशन है, वह बाहरी
तौर पर खत्म हो चुका है या आंतरिक तौर पर। अगर आप ऐसा करने में सफल हुए तो निश्चित
तौर पर आप अच्छा प्रॉफिट प्राप्त कर सकते हैं. परंतु यदि अगर आप अपने लोगों की
मानसिक स्थिति को नहीं समझ पाए तो पतन की ओर आप के रास्ते खुल सकते हैं।
कई लोग जब ऑफिस जाते हैं, तो उनको देखकर लगता है जैसे उनका मन थका हुआ और शरीर बेजान सा होगा. दिन भर काम करते हैं और शाम को मरा हुआ सा शरीर लेकर घर जाते हैं. मैं ऐसे कई लोगों को देखता हूँ जो कहने को तो प्रोफेशनल्स हैं परन्तु मानसिक तौर पर एकदम निल बट्टा सन्नाटा। वो कोई भी काम सही से नहीं करते और हर वक़्त किसी न किसी चिंता में डूबे रहते हैं. जब में उनसे बातें करता हूँ तो कहते हैं की किस्मत ही ख़राब है भाई. उनकी बातों और तथ्यों को सुनकर में भी सोच में पढ़ जाता हूँ. सारी बातों का निष्कर्ष यही है की ये लोग वो हैं जो हर पल मन में घर की बातें, बच्चों की बातें, पत्नियों की बातें या पारिवारिक जीवन के बारे में सोचते रहते हैं.
हाँ, जब वो ऑफिस में पहुँच जाते हैं तो कभी-कभी
बहुत अच्छा काम भी करते हैं. तब जब कोई इन्हें इनकी शक्तियां याद दिलाये। जब
सामाजिक तौर पर या किसी वीडियो को देखकर मोटीवेट हो जाते हैं. ऐसे लोग काम जरूर
करते हैं परन्तु ये लम्बी रेस के घोड़े नहीं बन पाते। जिस भी काम में खुद को
इंवॉल्व करते हैं वह काम सही से नहीं हो पाता मतलब जो आउटपुट है वह 100% नहीं आ
पाता। ऐसी स्थिति में कई लोग परेशान हो जाते हैं क्योंकि उनके अंदर का जो मोटिवेशन
है उस काम को करने के लिए वो टूट चुका है। तब उन्हें मोटीवेशन मिलता है बाहरी समाज
से।
आखिर क्या जरूरी है आंतरिक या बाहरी मोटिवेशन?
यदि अगर हमने जिंदगी में
कोई लक्ष्य खुद से सेट किया है या कोई गोल अगर हमने खुद बनाया है तो उसके लिए हमें
किसी भी प्रकार के बाहरी मोटिवेशन की जरूरत नहीं पड़ेगी। पर यदि लक्ष्य किसी और ने
बना कर दिया है तो हमेशा बाहरी मोटिवेशन की जरूरत पड़ेगी। मतलब जब कोई बोलेगा कि
तुम्हें यह लक्ष्य पूरा करना है, तो शायद ही कभी हम उस लक्ष्य को हासिल कर सकें।
परंतु जब हम आंतरिक तौर पर मोटिवेट होते हैं तो हम खुद तय करते हैं कि वहां तक
जाना है कि नहीं जाना है. जो लोग आंतरिक तौर पर मोटिवेट रहते हैं वह उन लक्ष्यों
को पूरा करने के लिए जी जान लगा देते हैं। “जो लोग आंतरिक तौर पर मोटिवेट होते हैं
उनका सफल होने के आसार ज्यादा होते है बजाए बाहरी तौर पर मोटिवेट लोगों का”.
क्या हमें वास्तव में मोटिवेशन की आवश्यकता है?
इस लेख को लिखकर और अपनी
जिंदगी के उतार-चढ़ाव देखकर मेरा यही निष्कर्ष है कि "हाँ, हमें मोटिवेशन की
जरूरत है. ऐसा नहीं है की व्यक्ति कभी परेशान नहीं होता, होता है. हम में से हर
कोई कभी न कभी बुरे दौर से गुजरता है. उस वक़्त ये मोटिवेशन ही कायम रखता है हमारे
सपनों को, जो हमें टूटने नहीं देता। सीधे शब्दों में कहूँ तो मोटिवेशन का अर्थ है
जरूरत।
अगर आप यह आर्टिकल पढ़ रहे हैं, तो इसका मतलब यह है कि आप भी आंतरिक तौर पर मोटिवेटेड हैं. तभी आप मोटिवेशन जैसी चीजों पर पढ़ने का शौक रखते हैं। परंतु यदि अगर आपको पता है कि आप बाहरी तौर पर मोटिवेट होते हैं मतलब जब आसपास का माहौल मोटिवेट करने वाला बन जाता है और तब अगर आप मोटिवेट होते हैं तो आपके लिए यह आर्टिकल एक छोटी सी मगर काम की सीख बन सकता है।
परमानेंट मोटिवेशन जैसा कुछ नहीं होता हाँ
मुझे याद है कि एक बार ट्रेनिंग के दौरान मैंने अपने ट्रेनर को पूछा था, जो हमें मोटिवेशन विषय पर पढ़ा रहे थे या हमसे मोटिवेशन पर सवाल पूछने के लिए प्रेरित रहे थे। मैंने पूछा था कि "क्या हम हमेशा के लिए मोटिवेट हो सकते हैं?" थोड़ी देर तक मेरे इस सवाल पर वह मुझसे बहस करते रहे. कि परमानेंट मोटिवेशन जैसा कुछ नहीं होता है। परंतु मुझे तो परमानेंट मोटिवेशन चाहिए था इसलिए मैंने इस प्रश्न पर जोर दिया कि आखिर परमानेंट मोटिवेट कैसे हुआ जाए? इस प्रश्न के जवाब में उन्होंने यही कहा था कि परमानेंट मोटिवेशन जैसा कुछ नहीं होता है. हमेशा हम किसी न किसी कारण से जरूर डिमोटिवेट हो जाते हैं।
उसके कई सालों बाद मैंने फिर से एक ट्रेनर को पूछा कि "क्या सर हम
हमेशा मोटिवेट रह सकते हैं?" और इस बार मुझे निराशा नहीं हुई क्योंकि इस बार
मुझे जवाब मिल चुका था। आपको क्या लगता है, इसका क्या जवाब दिया होगा सर ने. या
क्या जवाब इस सवाल का होना चाहिए? आप नीचे कमेंट बॉक्स में इस सवाल का उत्तर जरूर
देना।
बाहर से मोटीवेट होने के
बजाय अंदर से मोटीवेट हुआ जाए तो ज्यादा बेहतर होगा। पर अंदर से मोटीवेट होने के
लिए जरूरी है खुद पर कंट्रोल, जो ज्ञान और ध्यान से ही हासिल होता है.
ध्यान से बढ़ता है ज्ञान - और पढ़ें - खुद को हर समय मोटिवेट कैसे रखें ।
परमानेंट वाला मोटिवेशन सिर्फ खुद से ही जेनरेट होता है बाकी बाहरी मोटिवेशन बदलते रहते है या ये कहा जा सकता है बाहरी मोटिवेशन से हम दूसरों के अनुसार काम करते है जो कभी कभी स्वतंत्र रूप से नही हो पाता तो परमानेंट वाले मोटिवेशन के लिए हमे खुद पर विचार करना आवश्यक है
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